सही आसन पर ही बैठकर करनी चाहिए पूजा, जप और तप
पूजा के आसन का महत्त्व : सनातन धर्म की परंपराओं में हर क्रिया में एक गहरा रहस्य छुपा होता है, चाहे वह पूजा हो, जप हो या तप। इन सभी का सही ढंग से पालन करने से ही हमें उस पूजा का सम्पूर्ण फल प्राप्त होता है जिसकी हम कामना करते हैं। हमारे श्रध्देय गुरुजी श्री राज महाजन जी ने हाल ही में अपने एक वीडियो में इस बात से परदा उठाया और बताया कि “पूजा, जप और तप करते समय पूजा के आसन का चयन और उपयोग कितना महत्वपूर्ण है।”
पूजा के आसन का महत्व, नियम और प्रभाव
गुरुदेव बताते हैं कि जब कभी भी आप जप, तप या पूजा करें तो हमेशा पूजा के आसन को बिछाकर ही बैठें। और वो आसन किसी धातु का नहीं होना चाहिए, क्योंकि धातु ऊर्जा की सुचालक होती है और आपकी आध्यात्मिक और आत्मिक ऊर्जा को धरती में प्रवाहित कर देती है।
इसलिए, ऊर्जा के कुचालक — जैसे कि ऊन का आसन या मोटे कपड़े का आसन सर्वोत्तम माने गए हैं।
“ऊन का आसन आपको धरती के प्रत्यक्ष संपर्क से अलग करता है, जिससे आप जो भी जप, तप या साधना करते हैं, उसकी ऊर्जा आपके भीतर ही सरंक्षित रहती है। पूजा के आसान के रंग गहरा नहीं होना चाहिए। लाल , पीले और हरे रंग उत्तम माने जाते हैं .”
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पूजा के बाद पूजा के आसन के क्या करना चाहिए
गुरु श्री राज महाजन जी ने यह भी बताया कि जब आप अपने जप या पूजा को पूर्ण कर लें, तो एक विशेष कार्य करें:
- अपने पूजा के आसन आसन को उठाएं।
- उस स्थान पर जहाँ आपने पूजा के आसन बिछाया था, वहां थोड़ा जल छिड़कें।
- उस जल को अपनी आंखों और मस्तक पर लगाएं।
- और इसके साथ बोलें : “ॐ इंद्राय नमः, ॐ शक्राय नमः”

इंद्र देव से जुड़ा एक विशेष रहस्य
गुरुदेव ने एक अत्यंत रोचक बात बताई – इंद्रदेव को एक विशेष वरदान प्राप्त है कि जब भी कोई भक्त पूजा करेगा, तो उस पूजा का आधा पुण्य फल इंद्रदेव को प्राप्त हो जाएगा।
अब प्रश्न उठता है कि यदि हम पूरी श्रद्धा से पूजा करें, तो हमारा पुण्य फल अधूरा क्यों रहे?
इसलिए, यह मंत्र – “ॐ इंद्राय नमः, ॐ शक्राय नमः” – इंद्रदेव को सम्मानपूर्वक समर्पित कर, उन्हें विनम्र निवेदन करता है कि वे हमारे पुण्य फल को न लें। यह प्रक्रिया न केवल आपकी पूजा और साधना को पूर्ण करती है, बल्कि आपके द्वारा की गई पूजा का फल भी आपके पास ही सुरक्षित कर देती है।
पूजा के आसन और ऊर्जा का संतुलन – एक आध्यात्मिक विज्ञान
गुरुजी श्री राज महाजन के ये वचन हमें यह सिखाते हैं कि सनातन धर्म केवल कर्मकांड ही नहीं है , बल्कि एक दिव्य विज्ञान है।
हर प्रक्रिया, हर नियम — चाहे वह पूजा के आसन का चुनाव हो या जल छिड़कने की परंपरा — ऊर्जा के संचालन और संरक्षण से जुड़ी हुई है।
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आइए, हम सब मिलकर इन छोटी छोटी प्रक्रियाओं को अपनाएं और अपनी पूजा, जप, तप और साधना को और भी प्रभावशाली बनाएँ, गुरु कृपा से और संकल्प शक्ति से।
“सियापति श्रीरामचंद्र जी की जय!”